Last modified on 30 मार्च 2025, at 21:16

पक रही है कविता / संतोष श्रीवास्तव

कविता ज़िन्दगी की
अनिवार्य ज़रूरत है

वह सुनती है
आत्मा की आवाज
देखती है ...

निर्दयी, निर्मम आतंक से
एक ही पल में मिटते
पृथ्वी को दी
हर बन्दे के रूप में
ईश्वर की सबसे
बेशकीमती सौगात को

बंदूकों की होड़
बमों का जखीरा
आत्मघाती धमाकों से
ढेर हुई इंसानियत को

शवों पर कलपते दाम्पत्य को
अनाथों की बढ़ती तादाद को
युद्ध ,विनाश की कगार पर
झुकती दुनिया को
जो विनाश का
केवल एक घातक अंश है

हर राष्ट्र को ख़ुद को
सही साबित करने की
जरूरी बहसों में डूबते
सियासी दाँवपेंच की जद में
धर्म को

कविता को
आवाज देनी है ज़मीर को
बचाना है प्यार को
हताश नहीं होना है
कविता को
 
शब्द शब्द गढ़ना है
टूटे हुए को
भाव भाव जगाना है
विश्व चेतना को

पक रही है कविता
अंश अंश मेरे अंदर
जो संपूर्ण मानवता को
बचाने के लिए
करेगी अंतरसंवाद