Last modified on 28 जुलाई 2010, at 19:44

पग-पग पर ढहने की आदत खो गई अब तो / सांवर दइया

पग-पग पर ढहने की आदत खो गई अब तो।
सुनो, सच कहने की आदत हो गयी अब तो।

ये सुविधाएं अलग न कर सकेंगी मुझे उनसे,
रगों में बहने की आदत हो गयी अब तो।

कोने में छिपकर रोया नहीं जाता मुझसे,
सरेआम कहने की आदत हो गई अब तो।

फुटपाथ पर नहीं आया बस तभी तक डर था,
तूफां से लड़ने की आदत हो गयी अब तो।

गया वक़्त जब दवाओं की थी जरूरत हमें,
हर दर्द सहने की आदत हो गई अब तो।