भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पग धरि चलत स्याम आँगन में / स्वामी सनातनदेव
Kavita Kosh से
राग तोड़ी, ताल मूल 17.7.1974
पग धरि चलत स्याम आँगन में।
पकरि गडूला डगमग डोलत, पुनि-पुनि परत धरनि में॥
रुनझुन-रुनझुन बजहिं पैंजनी, सुनि-सुनि उमँगत मन में।
मणि भूपै पग धरत, लगत जनु उठत कमल छन-छन में॥1॥
सामुहिंतें बोलत जब मैया, किलकत हँसत चलन में।
गिरि-गिरि परत, उठात जसोमति, धूरि लगी सब तन में॥2॥
झारि धूरि चुचकारत जननी, लडुआ देत करन में।
निरखि निहाल होत मन ही मन, द्वै-द्वै दाँत वदन में॥3॥
मन-मन यही मनावत विधि सों, विहरहिं ललन भवन में।
विधि की दई अपूरव निधि यह बसी रहै नयनन में॥4॥