भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पग / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
कठै धरां
पग
दूखै
मुरधर री
रग-रग।
सुपना
सुकाळ रा
देवै दुख
भूख देवै
दकाळाँ।
नीं मिटै
दुख रा
जंजाळा।
दुख
काळ रो
दकाळ रो।