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पचीस / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'
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पवन सन्देश दे जाओ
मेरे बाद धनु को तान जूझेगा समर में कौन
ले कर से हमारे वाण! सोचता हूँ मौन
कि मरती बार मैं उसके चरण चूमूँ
पवन उसको लिये आओ! पवन...
युवतियाँ कितनी विहँस पति को सजाई है
दधि-दूव-अक्षत से पूज शरहद पर भिजाई है
कि अंतिम बार मस्तक में लागाऊँ मैं
पद-राज उसको लिए आओ
पवन संदेश दे जाओ
उठाकर हाथ माताएँ दिये वरदान कितने कौन
की बेटा! जीत सकते हो, तुम्हीं भारत सीमाने को
अरे! उस चरण पर मस्तक चढ़ा दूँ मैं, पवन जल्दी बहे आओ
पवन संदेश दे जाओ
तुम बसन्ती पवन पावन हो, उड़ो! उड़कर चले आना
मगर प्रिय के विरह की वेदना को तुम साथ मत लाना
जवानो के नसों में खून है या हो गया पानी
पवन संदेश दे जाओ
पवन जल्दी कहे जाओ