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पच्छूं बगिया कै खती सुनाईन है अलगू / बजरंग बिहारी 'बजरू'
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पच्छूं बगिया कै खती सुनाईन है अलगू
हमका पंडित कै नवा जाल देखाइन अलगू
ब्याज बाढ़ा रहा झिंगुरी कै मुला मनसाने
फगुआ गाइन औ' डेढ़ टाल सुनाइन अलगू
उठी बिकास की आंधी ऊ गाँव का घेरिस
पंच परधान बचे धूरि नहाइन अलगू
जौने सर्दी मा लिहिन गोंदरी साल दस बीता
राजा कै सरदी छुईन सीस चढ़ाइन अलगू
पट्टा पाइन, जमीन सपन रही
साँझ-बाती न किहिन दिया बुझाइन अलगू
नाक रगड़ीन रुपया दैके, तब मिला कारड
रासन कब्बो न मिला उमिरि बिताईन अलगू
'बजरू' बेचैन भए जबसे ई कथा जानिन
उनके गुस्सा पै तनिक मूड़ हिलाइन अलगू