पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी / 'बेख़ुद' देहलवी
पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी
ये शोख़-निगाही दम-ए-रूख़्सत नहीं अच्छी
सच ये है कि घर से तेरे जन्नत नहीं अच्छी
हूरों की तेरे सामने सूरत नहीं अच्छी
भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का
हर बात में तकरार की आदत नहीं अच्छी
क्यूँ कल की तरह वस्ल में तश्वीश है इतनी
तुम आज भी कह दो कि तबीअत नहीं अच्छी
जब इतनी समझ है तो क्यूं नहीं जाते
मैं भी यही कहता हूँ कि हुज्जत नहीं अच्छी
हूरों की तरफ आँख उठा कर भी न देखा
क्यूँ अब कभी कहोगे तेरी नियत नहीं अच्छी
पहुँचा है क़यामत में भी अफ़साना-ए-उल्फत
इतनी भी किसी बात की शोहरत नहीं अच्छी
हम ऐब समझते हैं हर इक अपने हुनर को
क्या कीजिए मजबूर हैं क़िस्मत नहीं अच्छी
मिल आइए देख आइए आज आप भी जा कर
‘बे-ख़ुद’ की कई रोज़ से हालत नहीं अच्छी