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पट-परिवर्तन / प्रताप सहगल

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हे अभिमन्यु! तुम अपनी बांहों में
पड़े वीर्य का प्रयोग
किसी चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए
नहीं कर सकते।
केवल किसी सरकारी नीति के विरोध में
अपने पौरुष का कर सकते हो प्रदर्शन
मर सकते हो जलकर
किसी चौराहे पर।
तुम्हारा नाम
संसार के नामी अखबारों में छप जाएगा
और तुम्हारी समाधि भी बन जाएगी।

हे अर्जुन! गाण्डीव उठाते ही आज
कोई मृगाक्षी तुम्हारे सामने आ जाएगी
और तुम चुन लिये जाओगे
संसद-सदस्य।
तब बापू के अनुयायी
अहिंसा के पुजारी कहलाओगे।

हे कृष्ण! तुम तो केवल
रथ हांकना जानते हो
कैसे चला पाओगे जैट और रॉकेट
चले जाओगे कहीं दूर
गोपियों की कंचुकी न सूख पाएगी।
इसलिए हे ब्रदर!
कभी भी चालक पद स्वीकार न करना
एक मंत्रीपद
रिक्त है कभी का तुम्हारे लिए।

हे द्रोपदी!
बड़ी मूर्ख थीं तुम
जो द्वापर में जन्म लिया
पांच पति ही तो मिले थे
आज होती
तो पचास मिलते
और बिना तुम्हारी आज्ञा के
नहीं हिलते।

हे युधिष्ठर! अब तुम्हें क्या कहूं
आज होते
तो सदाचार समिति के अध्यक्ष होते
साधु-समाज के बनते संरक्षक
तुम्हारे सभी भाइयों के पास
कार रहती/बंगला रहता
कुन्ती कभी भी कर्ण के पास न जा पाती
और तुम्हारे मरने के बाद
चौराहे में स्थापित होती तुम्हारी
धवल प्रतिमा
पूजते उसे लोग
तुम्हारे खिलाफ केस की फाइलें
दबी रहतीं
जैसे दबी हैं आज तक।
सच मानो
बड़ी भूल की तुम लोगों ने
जो पैदा हुए द्वापर में।

1969