भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पट / राजूराम बिजारणियां

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अमूझतै बादळ री
कूख सूं

धरती पर आई
नान्ही सी छांट रै मिस

अलेखूं मूंढा माथै
पसरी मुळक...

खाण लागी गरणेटा
चिंतावा रै ओळै-दोळै

लारो-लार पड़ता
गड़ां री ‘पटां’ सूं।