पड़तालीओ हुण आशक केहड़े?
नेंहु लग्गा मत्त गई गवाती।
‘नहन<ref>नहीं</ref> अकबर’ ज़ात पछाती।
साई शाह रग तों भी नेड़े।
पड़तालीओ हुण आशक केहड़े?
हीरे तूँ मुड़ राँझा होई।
एह गल्ल विरला जाणे कोई।
साईं चुक्क पवण सभ झेड़े।
पड़तालीओ हुण आशक केहड़े?
लै बराताँ रातीं जागे।
नूर नबी दा बरसन लागे।
ओह वेख असाडे वेहड़े।
पड़तालीओ हुण आशक केहड़े?
‘अनलहक’<ref>मैं सच्च हूँ</ref> केहा उन लोकाँ।
मनसूर न देंदा आपे होका।
मुल्लाँ बन बन आवन पेड़े।
पड़तालीओ हुण आशक केहड़े?
बुल्ला सहु शरा ते काज़ी है।
हकीकत ते भी राज़ी है।
साई घर घर निआओं निबेड़े।
पड़तालीओ हुण आशक केहड़े?
शब्दार्थ
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