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पड़ाल री ओट / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
सुंवारता बांकड़ली मूंछ्यां
फेरता मूंडै हाथ
भरता मनड़ै मोद
उठायां सिर गुमैज सूं
धरतां लाम्बा-लाम्बा डिग
देख..
धोरै ढळतै
छेल भंवर भतूळियै नै
खाथी-खाथी
पग उठावती
बा बळखावती
जुवान रेत.!
करती सावचेत टोकी नै
लुकगी सरड़ दाणीं
मा पड़ाल री ओट में।