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पड़ जायें आबले न कहीं नंगे पाँव हो / शैलेश ज़ैदी
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पड़ जायें आबले न कहीं नंगे पाँव हो।
गरमी में तारकोल की सड़कों पे मत चलो॥
या तो मेरी ज़बान ही चाकू से काट दो।
या मैं जो बात तुमसे कहूँ ध्यान से सुनों।।
वो आदमी जो मर गया हमशक्ल था मेरा|
पहचानने में मुझको बहुत देर मत करो॥
हर एक अपने ख़ोल में नंगा मिला मुझे।
मैंने बहुत समीप से देखा हर एक को॥
दो इस तरह न मौत की तुम धमकियाँ मुझे।
साहस अगर है समाने आओ, उठो बढ़ो॥
सीने पे जिसके सच का कवच है वो क्यों डरे।
अपमान अपना करना है तो गोली से दाग़ दो॥
क्या ग़म है तुमको रोते हो क्यों सारी रात तुम।
अपना समझके हमसे कोई बात तो कहो॥