भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पढने लगा ऋचाएँ ताल / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेघ बंधु प्रिय
तुम्हें देखकर
हँसने लगा पियासा ताल

अभी जेठ भर
तपा रात दिन
यह जलती गरमी से
पुरवा ने
साँकल खड़काई
कुछ मादक नरमी से

तुम्हें देखकर
खोल किंवाड़े
हँसने लगा सलोना ताल

पीपल हरियाये
कुआँ सुखी है
मंदिर बजे मँजीरे
शंख बजे
घंटे भी गूँजे
सुनी आरती तीरे

तुम्हें देखकर
भगत जनों सँग
हँसने लगा पुजारी ताल

इधर मछलियाँ
लगीं तैरने
जल तरंग धुन गातीं
बच्चों के सँग
जलमुर्गी भी
शोभा ताल नहाती

तुम्हें देखकर
बूँदों के सँग
पढ़ने लगा ऋचायें ताल