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पढ़ना चाहता हूँ / सुभाष नीरव
Kavita Kosh से
मैं पढ़ना चाहता हूं
एक अच्छी कविता।
कविता
कि जिसे पढ़ कर
खुल जाएं
बाहर-भीतर के किवाड़
मन का कोना-कोना
गमकने-महकने लगे
ताज़ी हवा से।
कविता
कि जिसे पढ़ कर
मन के अंधेरों में
उतर आए
रोशनी की लकीर।
पढ़ना चाहता हूं मैं
एक अच्छी कविता।
एक ऐसी कविता
जो उतरे मेरे भीतर
पहाड़ों पर से
जैसे उतरते हैं घाटियों में
जल-प्रपात
अपने मधुर संगीत के साथ।
कविता
तुम आना
तो आना
इसी तरह मेरे पास।