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पढ़ने का मौसम आया है / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
'रोज सुबह अब जल्दी उठना' मम्मी ने यह समझाया है।
छुट्टी के दिन बीत गये हैं, पढ़ने का मौसम आया है।
सोचा था जायेंगे अबकी,
हम शिमला या ऊटी.
पर पापा को ऑफिस से ही,
नहीं मिल सकी छुट्टी.
घर में ही बस खेल-कूद कर हमने मन को बहलाया है।
छुट्टी के दिन बीत गये हैं, पढ़ने का मौसम आया है।
नया-नया है अपना बस्ता,
कॉपी और किताबें।
नई-नई है ड्रेस हमारी,
जूते और जुराबें।
नई-नई कक्षा में हमने नया-नया सब कुछ पाया है।
छुट्टी के दिन बीत गये हैं, पढ़ने का मौसम आया है।
जैसे पहले नाम कमाया,
फिर है नाम कमाना।
मेहनत से पढ़-लिख कर हमको,
फिर है अव्वल आना।
यही सँदेशा माह जुलाई हम सबकी खातिर लाया है।
छुट्टी के दिन बीत गये हैं, पढ़ने का मौसम आया है।