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पढ़ी हुई पुस्तक / रघुवंश मणि

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मैं उस पुस्तक को

बहुत दिनों बाद खरीदूंगा

किसी रद्दी की दुकान से

धूल से धुंधलाए चश्मे वाले

दुकानदार से

बहुत कम दामों पर


उतर आएंगे उसके दाम तब तक

निश्चित रूप से उतर आएंगे

बंद हो चुकी होंगी चर्चाएँ

उत्सुकता गुज़र चुकी होगी

किसी उत्तेजक समाचार की तरह

इतिहास में बदल कर

चार रुपया किलो भर


तब मैं उस पुस्तक को खरीदूंगा

आराम से पढ़ सकूंगा उसे

बग़ैर जल्दबाज़ी के


शोकेस के नीचे होगी वह

पढ़ी गई किताबों की भीड़ में

उस पर काफ़ी-काफ़ी निशान होंगे

और जगह-जगह मार्जिन लिए

किसी के हस्ताक्षर

किसी का पता


उसके दाम काफ़ी गिर चुके होंगे

मुझे नहीं होगी कोई परेशानी

उस बचत-सी ख़रीद में