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पढ़ो देखो ये सुबहो शाम / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
पढ़ो देखो ये सुबहो शाम है, मेरी कविता में।
मुहब्बत का सदा पैगाम है मेरी कविता में।
मुझे अनजान मत जानो तुझे मैं जानता भी हूँ,
कई जगहों पर तेरा नाम है, मेरी कविता में।
सफ़र आसान होगा तू इसे पढ़ता ही चल राही,
है छाँव तो कहीं पर घाम है, मेरी कविता में।
बड़े ज़ुल्मों सितम तुमने सहे जीवन की राहों में,
सुकूं है, चैन है, आराम है, मेरी कविता में।
बहुत बहलाएगी दिल बचपने की वह हँसी यादें,
है जामुन, बेर, मीठा आम है मेरी कविता में।
नशा उनका बना लिखना ये, अंतिम स्वांस तक,
सबको प्यारे प्रणाम लिखा है, उनकी कविता में।
भलाई काम है ‘प्रभात’ मेरा, फिर भी रुसवाई
मेरा जीवन लगा बदनाम है, मेरी कविता में।