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पढ़-लिख कर क्या करेंगे आख़िर राम, श्याम, रहमान वग़ैरह / देवमणि पांडेय

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पढ़-लिख कर क्या करेंगे आख़िर राम, श्याम, रहमान वग़ैरह
ये भी इक दिन बन जाएँगे चपरासी, दरबान वग़ैरह
 
रोज़ी-रोटी के चक्कर में हमने ख़ुद को गँवा दिया
कहाँ गया अपना वो तेवर, ख़ुद्दारी, पहचान वग़ैरह
 
दूर-दूर तक आदर्शों से रिश्ता नहीं सियासत का
नज़र कहाँ से आएँ इनमें सच्चाई, ईमान वग़ैरह
 
दौलत, शोहरत और प्रतिष्ठा सब कुछ हासिल है फिर भी
किसे पता क्या ढूँढ़ रहे हैं साहिब और धनवान वग़ैरह
 
फ़िल्में अगर नहीं चलतीं तो सोचो इनका क्या होता !
काट रहे हैं चाँदी हरदिन अक्षय और सलमान वग़ैरह
 
हम हैं सीधे-सादे इंसाँ कोई ऐब नहीं हम में
कभी-कभी, बस, ले लेते हैं, सिगरेट, विस्की, पान वग़ैरह
 
कम से कम इतवार के दिन तो अपने घर पे रहा करो
बिना बताए आ जाते हैं यार-दोस्त, मेहमान वग़ैरह