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पतंगे / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
आकाश में उड़ रही है
पतंगे
रंग-बिरंगी ,छोटी-बड़ी कई आकार की
सुंदर पतंगें
उनका रूप-रंग
आकार-प्रकार
डोरी-चरखी
सब चुनी है
उड़ाने वाले ने अपनी मर्जी से
कब ढील दे
कस ले कब
लपेटे कि काट दे
लड़ाए-भिड़ाए
जानता है उड़ाने वाला।
दूर से दिखती हैं सिर्फ पतंगें
सफलता के आकाश चूमती
या कटकर इधर-उधर भटकती
नहीं दिखते उड़ाने वाले हाथ
उसके भाग्य विधाता
निर्माता
पतंगे खुद कुछ नहीं होतीं
कहता रहा समाज
और मैं अड़ी रही
स्त्री पतंग नहीं होती।