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पतंगों के दिन / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
चरखी में छोरी नई फिर भराओ,
डोरी को मंजे का टॉनिक पिलाआ,
ये दिन मौज के हैं, पतंगें उड़ाओ,
पतंगों के दिन हैं, पतंगों के दिन!
पतंगें हवाओं से बातें करेंगी,
पतंगे पतंगों से जाकर लड़ेंगी,
वो हारेगा जिसकी पतंगें कटेंगी,
पतंगों के दिन हैं, पतंगों के दिन!
घिरी हैं पतंगों से सारी दिशाएँ,
पतंगें बनी हैं गगन की भुजाएँ,
कलाबाजियाँ हम भी आओ दिखाएँ,
पतंगों के दिन हैं, पतंगों के दिन!