भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पतंग उड़ाने से पहले / शहराम सर्मदी
Kavita Kosh से
पतंग उड़ाने से पहले ये जान लेना था
कि इस की असल है क्या और माहियत क्या है
बहुत नहीफ़ सी दो बाँस की खपंचें हैं
और उन से लिपटा मुरब्बे में ना-तवाँ काग़ज़
ये जिस के दम पे हवा में कुलेलें भरती है
ज़रा सी ज़र्ब से वो डोर टूट जाती है
पतंग कट गई तो इस का इतना ग़म क्यूँ है
पतंग उड़ाने से पहले ये जान लेना था
कि इस की असल है क्या और माहियत क्या है