भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पतंग / मनोज देपावत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धिन भाग है पतंग बणावणियै नै
धरती पर अेक चीज तो
ऐड़ी बणाई
जीं नै देख‘र नीचै आळा
घमंडीजै कै
ऊपर वाळै री डोर
नीचै वाळै रै हाथां में है।