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पतझड़ के बाद / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
ये सारे पेड़ खड़े हैं
सुखी लकडिय़ों की तरह नंगे
कपड़े जिनके उड़ गये हैं हवा में
अब धरती भेज रही है
फिर से इनके लिए
नये- नये कपड़े
होते हुए जड़ और तने से
वहीं डालियॉं कर रही हैं तैयारी
खुशी से फूटने की
फूलों की बारी है बस इसके बाद ।