भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पतझड़ में मुझको ख़ार का मौसम बहुत अज़ीज़ / फ़िरदौस ख़ान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पतझड़ में मुझको ख़ार का मौसम बहुत अज़ीज़
तन्हा उदास शाम का आल बहुत अज़ीज़

छोटी-सी ज़िन्दगी में पीया है कुछ इतना ज़हर
लगने लगा है मुझको हर एक ग़म बहुत अज़ीज़

सहरा की धूप नज़र आती है ये हयात
जाड़ों की नर्म धूम-सा हमदम बहुत अज़ीज़
 
सारी गुज़ारी उम्र ख़ुदा ही के ज़िक्र में
मोमिन की नात में ढली सरगम बहुत अज़ीज़

सूरज के साथ-साथ हूँ आशिक़ बहारे-गुल
सावन बहुत अज़ीज़, है शबनम बहुत अज़ीज़