भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पतझर के लिए गीत / मेरी ओलिवर / नीता पोरवाल
Kavita Kosh से
क्या आप कभी पत्तियों के ख्व़ाब देखने की कल्पना नहीं करते
हवा कि अनिश्चितता और हवा के अंतहीन सैलाब के बजाय
धरती को स्पर्श करना उन्हें कितना आरामदायक लगता होगा?
और आपको नहीं लगता कि पेड़, विशेष रूप से काई वाले खोखले,
जिनकी तलाश शुरू की जा रही है, छह या दर्जन भर पंछी
जिनके शरीर के अंदर नींद लेने के लिए आयेंगे?
क्या आप गोल्डनरॉड को अलविदा कहते हुए नहीं सुनते?
अनन्तकाल से पहली बर्फ के टीले के साथ उन्हें ताज पहनाया जा रहा है
तालाब सख्त होता जाता है और सफेद मैदान जिस पर
लोमड़ी इतनी तेज दौड़ती है कि अपनी लम्बी नीली परछायीं से बाहर निकल लेती है
हवा अपनी लटों को लहराती है
और शाम को जलाऊ लकड़ी की ढेरी अपने रास्ते पर चलने की ललक लिए थोडा लुढ़क जाती है