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पतझर / विलिमीर ख़्लेबनिकफ़ / वरयाम सिंह

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पतझर के ठगों की सभा
ठगों के पतझर के विचार
चोटियाँ बनाती हुई हवा के बीच
किरणों की नींद ।

हवा में आर्तनाद फेंकते
विवेक के होठ ।
नदी के पानी का रुकना
बिछना मोटे कपड़े के जैसे बर्फ़ीले रास्‍ते का ।
अनुमान लगाती तीन लड़कियाँ —
कौन-सा छोकरा
किसका ?

उड़ते हुए कबूतर
आख़िर उनकी उम्र भी क्‍या !
हर जगह क्षीण पड़ती छाया,
मेरी ओर बढ़ती आती बाड़,
ओ नहीं !


मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह