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पता नहीं जिंदगी दिखाती है / रंजना वर्मा

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पता नहीं ज़िन्दगी दिखाती है ख़्वाब कैसे नये-नये से
गुजरने लगती अँधेरी रातें दिए हैं सारे बुझे-बुझे से

ये चाँदनी ये सुहाना मंज़र ये चाँद तारे चमक रहे हैं
इन्ही से रौनक है इस जहाँ में दिखाई देते रुके-रुके से

चले भी आओ बुला रही है तुम्हें ये वीरान दिल की महफ़िल
बिना तुम्हारे खमोशियों के हैं सारे नग़में सुने-सुने से

तुम्हारी तस्वीर जाने जाना बसी हुई है हमारे दिल में
जो नींद आती हमारे ख़्वाबों में तुम ही लगते दिखे-दिखे से

चले चलें वक्त का हाथ थामे कभी पलट के न देख पाये
कभी कभी याद में उभरते हैं नक्शे माज़ी मिटे-मिटे से

हुई जो तिरछी नज़र तुम्हारी चुरा गयी सारा चैन दिल का
कहीं दुबक कर है नींद बैठी सुकून के पल डरे-डरे से

रहे मुहब्बत कभी न बदली हैं फूल ही कम हज़ार काँटे
भरी हुई तीखे ख़ंजरों से हैं सारे रिश्ते कटे-कटे से