भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पता नहीं / संतोष कुमार चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
रंगों के भूगोल में
डूबे थे कई रंग
काग़ज़ पर
दिख रहे थे
वे ख़ूबसूरत
लेकिन ......
अता पता नहीं था
तो केवल
उँगलियों का
ब्रश का
पानी का