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पता ही नहीं चला / मोहन कुमार डहेरिया

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पता ही नहीं चला
कब बदल गए हमारे रास्ते और मंज़िलें मंगल भाई

पता ही नहीं चला

कब शामिल हो गए मेरी भाषा में
पिज्जा, ब्राण्डेड जीन्स, लैपटाप, शेयर मार्केट तथा डालर जैसे शब्द
कब तुम्हारी बोली वाणी का हिस्सा हो गए
ग़रीबी-रेखा कार्ड, कण्ट्रोल की दुकान, मिट्टी का तेल, बोहनी बट्टी, त्यौहारी बाज़ार जैसे शब्द
कब तीन-चार कश के बाद मैं एशट्रे में मसलने लगा क़ीमती सिगरेट
कब कानों में खोंचने लगे तुम अधजली बीड़ी कि पी सको कई बार
कब लगा लिया मैंने कार में टी० वी०, ए० सी० तथा विदेशी म्यूजिक सिस्टम
कब चौड़ा करवा लिया तुमने साइकिल का कैरियर
लगवा ली उसके हैण्डिल में लाइट
कब बीतने लगे मेरे गर्मियों के तपते दिन
शिमला, कुल्लू, मनाली, कश्मीर तथा डलहौजी में
कब जेठ की लू से भरी तुम्हारी दोपहरें गुज़रने लगी
गुड़ी, अम्बाड़ा राखीकोल, तांबिया तथा उमरेठ के बाज़ारों में
लगाते थे थिगड़ेदार पाल वाली दुकान
ऐसा तो नहीं था पहले
एक ही माँ की कोख से पैदा हुए हम
एक ही आँगन में पले-बढ़े
बचपन में जब फाड़ दी थी बब्बू ने मेरी पतंग
कैसे टूट पड़े थे तुम उस पर
और बेइमानी से टँगड़ी मार गिरा दिया था श्याम बघेल ने तुम्हें हॉकी के खेल में
कैसे गड़ा दिए थे मैंने उसके पैरों पर दाँत
ज़ाहिर है
एक ही मिट्टी से जुड़ी थी हमारी जड़ें

पता ही नहीं चला
कब भूल गए मेरे शरीर के जीवाणु रोगों से लडऩे का हुनर
कब शिकार हो गया मैं उच्च-रक्तचाप, मधुमेह, अनिद्रा और अवसाद का
कब घास-फूस के बिजूके के मुक्के में तब्दील हो गया मेरा क्रोध और प्रतिरोध
कब मेरे जीवन-सरोकारों में आ बैठा एक बहेलिया लेकर अपना जाल
जड़ ली मैंने अपने हाथ की अँगूठी में हीरे की जगह अपनी ही आत्मा

पता ही नहीं चला
कब लौह-छड़ों में बदल गई बोझ ढोते-ढोते तुम्हारे शरीर की हड्डियाँ
कब सीख ली कुत्ते की तरह जीभ से चाट-चाट कर अपने घावों को ठीक करने की कला
किस दुकान से ख़रीद ली गाढ़ी और गहरी नींद
कब उतार फेंका अपने आक्रोश की देह से रेशमी लिबास
निकलने लगे मुँह से थूक के सच्चे गुस्सैल छींटे
कब करियाकर हो गया तुम्हार माथा प्रखर और ज्यादा मनुष्योचित
श्रम की धूप में झुलस-झुलस कर

सचमुच पता ही नहीं चला मंगल भाई
कब पीछे लग गया बदबू का एक झोंका
फूलों और इत्रों की ख़ुशबू में डूबे मेरे उत्सवों के पीछे
गटर और कीड़ों से बिलबिलाती नालियों से घिरे घर में रहने के बावजूद
कैसे सने हैं जीवन की सुरभि से अभी तक तुम्हारे सारे त्यौहार ।