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पति-सेवा को मानती जो सौभाग्य अपार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग खमाज)
पति-सेवाको मानती जो सौभाग्य अपार।
बनती वह, सब त्याग सुख, पत्नी सेवाधार॥
पूजनीय माँ-बाप को जान ईश प्रत्यक्ष।
सेवा रत सुत समझता जीवन का यह लक्ष्य॥
होते पत्नी-पुत्र यों सेवक जहाँ अनन्य।
वे शुचि घर, वे कुल, धरणि होते अतिशय धन्य॥