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पति परायणा महादेवि! ये कानब कियै ने बन्न करै छो / बाबा बैद्यनाथ झा
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पति परायणा महादेवि! ये कानब कियै ने बन्न करै छो
अहींक मारल देखू निशिदिन हमहुँ कोना हकन्न करै छी
कृपा-दृष्टि एतेक अहाँकेर रोज महाभारत होइते अछि
तइयो बिसरि-प्रतिष्ठाकेँ अप्पन उनटे हमहि प्रसन्न करै छी
अहींक मोह-पाशमे कामिनी! मित्र-कुटुम्ब, गाम-घर छूटल
आवाहन कऽ रोजे जतनसँ नव-नव दुःख आसन्न करै छी
माथ चटा ऑफिससे जखने थाकल-मारल घर अबै छी
सिंहिनी जकाँ निज गर्जनसँ कोंढ़-करेजकेँ सन्न करै छी
अहाँक मुँहसँ आन ककरो नइहर छोड़ि बड़ाइ ने सुनलहुँ
लऽ शिकायत सभकेर मच्छड़ सन कान लग भन्न-भन्न करै छी
कते आस लगा कऽ ‘बाबा’ हाथ अहाँक दरमाहा छै छी
फैशनक सामान मँगाकऽ राशन लेल बिपन्न करै छी