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पत्ता-2 / केशव
Kavita Kosh से
शाख ने
अपनी देह की हरियाली में
गड़ते एक पीले दाँत को
झुँझलाकर
तोड़ दिया
अपनी गोद में
थाम लिया उसे
हवा ने
खेली
जी भरकर
फिर उकताकर
छोड़ दिया
पत्ते ने
शाख से टूटकर
हवा से छूटकर
फिर
धरती से
अपना नाता
जोड़ लिया