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पत्थरों का शहर / निदा नवाज़

तुम
आज भी मेरे पास हो
मेरे बहुत निकट
स्मृतियों में ढली हुई
वैसी ही गुम-सुम
अपने मुख पर
प्रश्नों का अम्बार लिए
प्यारे दिल का विस्तार लिए
मैंने सारे जग की मिटटी छानी
निकला ढूंढने उनके उत्तर
पर इस पत्थरों के शहर में
शीशे का कोई मोल कहाँ
मत रोओं, बिखराओ मोती
देखों मैं निराश नहीं हूँ
इन कजरारे मस्त नयन का
आमन्त्रण स्वीकार मुझे
आओ
रच लें अपनी एक सुंदर सृष्टि
पुरातन यादों की मधुर छाया में
वह पेड़ शहर से दूर
अलग।