पत्थरों के देवता / विशाल समर्पित
व्यर्थ में तुम मत बहाओ क़ीमती आँसू तुम्हारे
आँसुओं से पत्थरों के देवता गलते नहीं हैं
नेह की नदियाँ तुम्हारी आँसुओं संग बह न जाए
यूँ किसी के छोड़ने से दुर्ग नेह का ढह न जाए
उँगलियों के पोर से तुम आँसुओं को पोछ डालो
आँसुओं से स्वयं को ही उम्रभर छलते नही हैं
आँसुओं से पत्थरों के......
जो ह्रदय हो शैल सम प्रिय उस ह्रदय झरना नही
आवागमन है क्रम नियति का मन दुखी करना नही
जब ढलेंगे ये ढलेंगे स्वयं अपने आप इक दिन
आँसुओं से दुर्दिनों के सूर्य प्रिय ढलते नहीं हैं
आँसुओं से पत्थरों के......
धीर धरकर तुम अधर पर मुस्कुराकर मौन साधो
आँख की बहती नदी पर निडर होकर बाँध बाँधो
लेशभर भी प्रेम होगा तो स्वतः ही जल उठेंगे
आँसुओं से नेह के दीपक कभी जलते नही हैं
आँसुओं से पत्थरों के......
स्वप्न देखो ख़ूब जी भर किंतु इतना याद रखना
पहले रिश्तों को समझना बाद में बुनियाद रखना
स्वप्न होते हैं हक़ीक़त मात्र दृढ़ संकल्प से ही
आँसुओं से स्वप्न प्रियतम फूलते-फलते नही हैं
आँसुओं से पत्थरों के......