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पत्थरों से प्यार की बातें किया करता हूँ मैं / शैलेश ज़ैदी
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पत्थरों से प्यार की बातें किया करता हूँ मैं।
जुस्तुजू में आबशारों की बहुत भटका हूँ मैं॥
मुझको तूफ़ानो में भी होता नहीं दरिया का ख़ौफ़।
बे झिझक पानी में नीचे तक उतर जाता हूँ मैं॥
पूछते हैं लोग नाहक़ मुझसे मेरी ख़ैरियत ।
खुद ख़बर मुझको नहीं रहती कभी कैसा हूँ मैं॥
देख लेता हूँ हरी शाख़ों में शोले आग के।
कह दो लोगों से कि अपने दौर का मूसा हूँ मैं॥
जिन दरख़्तों पर हुआ करते थे पत्ते बेशुमार।
उनकी शाख़ों को बरहना पा के अफ़सुर्दा हूँ मैं॥