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पत्थर की फसल / रामकृपाल गुप्ता

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जाओ निकाल दो
काँटा उनके दिल का
उनकी सुराही में बूँद भर अमृत का
प्यार भरा ढाल दो।
नहीं तो
सुरा का समन्दर छलेगा उन्हें
दाग तो घुलेगा नहीं
अलबत इन्सान डूब जायेगा
जाओ सँभाल दो।
जाओ सँभाल दो
आज का पत्थर बड़ी नाज़ुक फ़सल है।
दल का दल टिड्डियाँ फरेबी धिर
पल भर में चट कर जाती हैं।
कल की बनी ताजी दीवारें ढह जाती हैं।
जाओ विष द्रव की फुहारों से
कर दो विनाश उन क्रीड़ा के जग का
ठोकर दो धँसती दीवारें उछाल दो
घुटते ईमान को जीवन की ज्वाल दो
निकाल दो
काँटा निकाल दो।