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पत्थर दिल / निवेदिता झा

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जब भी बारिश होती
पठार मुस्कुरा उठता
उसकी तलछटी पर होगीं हरी दूभ
खुखड़ी और बकरियाँ
थोडा हँसेगी बतियायेगीं
मुंह चिढाती निकल नहीं जाएगीं

बारिश होती दहल जाता कोयला
उसके आँगन में भरा रहेगा जल
परेशानी में रहेगें मजदूर
पत्थर दिल वह नहीं बोल पाएगा दो शब्द
नदी नाले अँधे कूंए सब बोलने लगेगें
हल के चलते हीं अजगर चला जाएगा दूर
समय तो घडियाल बजाएगा ही
कूजु, घाटो की खादान से
निकलेगीं सखी सहेलियाँ
और मांदर के थाप पर उलाहना देती...
पत्थर दिल हो तुम अब भी।