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पत्थर से भी पत्थर निकली सोना बाई / विजय बहादुर सिंह
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पत्थर से भी पत्थर निकली सोना बाई
फूटा ढोल कनस्तर निकली सोनाबाई ।
छत माने गाफ़िल बैठे थे हम तो उसको
चूना रेत पलस्तर निकली सोनाबाई ।
मोम का चेहरा काँच की आँखें रँग गुलाबी
सच्चे झूठेअच्छर निकली सोनाबाई ।
जाल बनी जंजाल पसारे क़दम-क़दम पर
जन्तर मन्तर तन्तर निकली सोनाबाई ।
मायामृगी महामायाविनि मन को हरती
माया का मन्वन्तर निकली सोनाबाई ।
इस दुनिया के हर विधान की हंसी उड़ाती
अगड़म बगड़म तगड़म निकली सोनाबाई ।