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पत्थर से मुकालिमा है जारी / जमाल ओवैसी
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पत्थर से मुकालिमा है जारी
दोनों ही तरफ़ है होशियारी
वहशत से मैं भागता रहा हूँ
फिर मुझ पे जुनूँ हुआ है तारी
दुर्वेश को रख के ख़ाक-ए-पा में
करता है ज़माना शहरयारी
पत्थर से मुझे न चोट पहुँची
इक गुलने दिया है ज़ख़्म कारी
शहरी वतन-ए-अज़ीज़ का हूँ
लेकिन है शेआर अश्क-बारी
मज़हब है मिरा तरीक़-ए-हिन्दी
देरीना बुतों से अपनी यारी
पाया है फ़रोग़-ए-सेकुलरिज़्म
तल्वार हुई है अब दो धारी
गुज़रे हुए दिन का इस्तिआरा
ये मौलवी और ये भिकारी