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पत्थर हैं लोग सब यहाँ जज़्बात कुछ नहीं / मोहम्मद इरशाद
Kavita Kosh से
पत्थर हैं लोग सब यहाँ ज़ज्बात कुछ नहीं
किससे करें हम बात यहाँ बात कुछ नहीं
वैसे तो रोज़ मिलते हैं दुनिया की नज़र में
दिल की न बात हो वो मुलाकात कुछ नहीं
औरों की बात अपनी ज़बाँ से जो कहते हैं
ऐसे लाचार लोगों के ख़यालात कुछ नहीं
दुनिया-ए-दिल को अपनी जो आबाद रखते हैं
फिर उनके सामने ये कायनात कुछ नहीं
किस्मत में जिनके लिखी है सियाह रात
उनकी नज़र में फिर ये दिन रात कुछ नहीं