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पत्थर / गुरप्रीत
Kavita Kosh से
एक दिन
पूछता हूँ
नदी किनारे पड़े पत्थर से
बनना चाहोगे
किसी कलाकार के हाथों
एक कलाकृत
फिर रखा जाएगा तुझे
किसी आर्ट गैलरी में
दूर दूर से आयेगे लोग
तुझे देखने
लिखे जाएँगे
तेरे रंग रूप आकार पर लाखों लेख
पत्थर हिलता है
ना ना
मुझे पत्थर ही रहने दो
हिलता पत्थर
इतना कोमल
इतना तो मैंने कभी
फूल भी नहीं देखा