पत्नी केॅ नाम पत्र / कस्तूरी झा 'कोकिल'
सुनलेह जी!
प्रकृति/पुरुश
नर/नारी
सृश्टि केॅ आधार छीकै।
जड़, चेतन
पशु/पंछी
कीट/पतंग
कोय एकरॅ अपवाद नैं।
पुरुश के आधा शरीर में
नारी विराजै छै।
वही नाँकी नारी केॅ
दिलदिमाग में-
रोम-रोम में पुरुश के राज छै।
पति, पत्नी साथें
छाया नाँकी साथे-साथ
चलते रहै छै।
शादी विवाह-
ईश्वर केॅ यहाँ तय होय छै।
जेकरा सें, जहाँ, जै दिन हुयै।
बरमहा केॅ लकीर छीकै।
आय ताँय।
केॅ मेटने छै!
तोरा सब दिन कहै छेलिहौंनी।
तोहें आबेॅ बुझते होभौॅ।
हम्में तेॅ खूब बूझी रहलोॅ छीयै।
मतुर हमरो बूझला सें की?
तोहें स्वरगों में
हम्में धरती पर-
छटपट।
आँखी में बसली छॅ,
मोंन मेॅ बैठली छॅ
दिलोॅ में धँसली छेॅ।
मुदा-
नैं बोलै छॅ।
नैं बाजै छॅ।
स्वरगॅ में राजै छॅ।
खाय लेल बोलाबै छीहौॅ,
जखनीं जे खाय छीहौ।
भगवान पुकारै खनीॅ
बाँय पकड़ाबै छीहौॅ।
साथे-साथ धुमाबै छीहौॅ-
बावा वैद्यनाथ, बासुकीनाथ,
रामेश्वर नाथ
कर्पूर नाथ, काली माय,
बड़की दुर्गा जी परमेश्वरी माय।
आरो जे मोॅन पड़ै छै।
तोरा कखनूँ नैं भूलाय छीहौं।
आपनों सातोॅ कसम निभाबै छीहौं।
यहाँ, वहाँ में कहूँ नैं छोड़ने छीहों
तांेय सुनै छै की नैं?
हमरा आबाजै नै आबै छैं।
मोबाइल यहीं छुटी गेलहौं।
अक-बक-कुच्छों नैं सूझै छै।
तोहीं बोलॅे की करियै।
बोलॅ नीं बोलॅ नीं, आहे बोलॅ नीं
हम्में तोरे......।
10/12/15 रात्रि 9 1/2 बजे