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पत्नी के लिए-1 / भारत यायावर

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तुम आग के कितनी करीब हो

आँच में तपता

तुम्हारा ताम्बई चेहरा

दप-दप कर रहा है


मैं तुम्हें रोटी सेंकते देखता हूँ

और ललाट पर

छलछलाती पसीने की बूँदें

इन बूँदों को

तुम रोज परोसती हो

इसी से

प्यार से

बँधा है जीवन


(रचनाकाल :1990)