भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पत्नी के लिए-3 / भारत यायावर
Kavita Kosh से
दो प्यारे और भोले और निश्छल
बच्चों के बीच
सोई हुई है
गहरी नींद में
मेरे बेटों की माँ
मध्यरात्रि में
मैं उसके पास नहीं जाता
उसे नहीं जगाता
बस देखता भर हूँ
और एक मौन स्मिति
होंठों पर खिल उठती है
यह वही तो है जो दिन भर
फिरकी की तरह
बच्चों के साथ
घर-गृहस्थी में नाचती रहती है
मुझे भी बच्चे की तरह पालती है
दिन भर चैन से न बैठने वाली
कितनी शान्त और गहरी नींद में है
एक मिठास लिए
मेरा मन होता है
रात भर जागकर
उसे इसी मुद्रा में
देखता रहूँ
(रचनाकाल:1990)