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पत्नी प्रिया सें / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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कृष्ण पक्ष केॅ तिथि द्वादशी
हरेक महीना आबै छै।
स्वर्गारोहण याद पड़ै छै
मन दिल केॅ तड़पाबै छै।
ब्राह्मण एक सुहागिन एकटा,
तोरे नाम जमाबै छै।
पुत्रवधू, बेटा, प्रियतम सब
आपनों फर्ज निभाबै छै।
प्रियतम, पोताँ जखनीखाय छौं
खाय लेल साथ बोलाबै छौं।
मतुर पूछै छै नूनू हमरा।
बाबा! दादी नै आबै छौं
की कहिऐ तोंही बतलाब?
आँखीं लोर चुआबै छै।
बुतरू केॅ समझाना मुसकिल
घुमाय फिराय बहलाबै छै।