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पथिक तुम विचलित न होना / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
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पथिक तुम विचलित न होना॥
है कटीली झाड़ियों से त्रस्त पथरीली डगर यह
विघ्न-बाधाएँ अनेकों रोक लेंगी राह दुस्तर
उलझते इन कंटकों से श्रमित लोहित पाँव तेरे
हों सदा पर आँसुओं में तुम न रोना।
पथिक तुम विचलित न होना॥
कौन जाने पंथ का क्या छोर होगा
लक्ष्य अनजाना कहाँ किस ओर होगा।
क्या पता कटु मोड कितने राह में है
ढलेगी रजनी कहाँ कब भोर होगा।
ठौर हो या दुख के क्षण
छिन गये हों शांति के कण
मत निराशा सिंधु में मन घट डुबोना।
पथिक तुम विचलित न होना॥
राह का हर मोड़ तुमको छल चुकेगा
नयन का जल जब पलक से ढल चुकेगा।
नष्ट होंगे वहीं पर अवरोध सारे
यदि सतत शुभ आस का संबल रुकेगा।
पंथ चुक जाए न क्षण होगा कभी वह
धर्म पंथी का डगर पग चिह्न होना।
पथिक तुम विचलित न होना॥