पथ को मत आसान करो / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
चाह नहीं है मुझे दया की मत मुझ पर अहसान करो तुम।
मुश्किल ही रहने दो मेरे पथ को मत आसान करो तुम॥
मैं अपने मन की मस्ती में हरदम मस्त रहा करता हूँ,
सुख-दुख जो आते हैं उनको हँ कर सदा सहा करता हूँ।
विधि की रची हुई दुनिया से, मेरी दुनिया ही न्यारी है,
भावों की सुन्दर सरिता में, मैं दिन-रात बहा करता हूँ॥
भली बुरी जैसी भी है मत मेरी गति का ध्यान करो तुम।
मुश्किल ही रहने दो मेरे पथ को मत आसान करो तुम॥
मैं अपने पागलपन में ही प्राप्य वस्तु को पा लेता हूँ,
सुन-सुन कर इन जग वालों की मन के गीत बना लेता हूँ।
जो विषाद की किंचित रेखा, कभी हृदय में खिंच जाती है,
तो एकाकी बैठ कहीं कुछ गाकर जी बहला लेता हूँ॥
नहीं चाहिये मुझे सान्त्वना, मत मेरा यश-गान करो तुम।
मुश्किल ही रहने दो मेरे पथ को मत आसान करो तुम॥
मैं कष्टों के घेरे में घिर कर मुस्काना सीख चुका हूँ,
मैं प्रतिकूल परिस्थितियों में, नियम निभाना सीख चुका हूँ।
मुझे पहुँचने से मंज़िल तक कैसे कोई रोक सकेगा,
मैं काँटों से भरे मार्ग पर पैर बढ़ाना सीख चुका हूँ॥
मुझे प्यार है विपदाओं से, मत सुख का सामान करो तुम।
मुश्किल ही रहने दो मेरे पथ को मत आसान करो तुम॥
मुझे ज्ञात है, वैभव वाले झूठी प्रीत किया करते हैं,
प्रण करके पथ में केवल, दो दिन ही साथ दिया करते हैं।
बनी-बनी में ही बस उनको, संग निभा देना आता है,
पर बिगड़ी में ढूँढ़ बहाना झट मुँह फेर लिया करते हैं॥
नहीं कामना मुझे तनिक भी मत सहयोग प्रदान करो तुम।
मुश्किल ही रहने दो मेरे पथ को मत आसान करो तुम॥