पदावली / भाग-2 / मीराबाई
1.
आतुर थई छुं सुख जोवांने घेर आवो नंद लालारे॥ध्रु०॥
गौतणां मीस करी गयाछो गोकुळ आवो मारा बालारे॥१॥
मासीरे मारीने गुणका तारी टेव तमारी ऐसी छोगळारे॥२॥
कंस मारी मातपिता उगार्या घणा कपटी नथी भोळारे॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर गुण घणाज लागे प्यारारे॥४॥
2.
राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।
निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।
बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।
मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।
3.
आयी देखत मनमोहनकू, मोरे मनमों छबी छाय रही॥ध्रु०॥
मुख परका आचला दूर कियो। तब ज्योतमों ज्योत समाय रही॥२॥
सोच करे अब होत कंहा है। प्रेमके फुंदमों आय रही॥३॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर। बुंदमों बुंद समाय रही॥४॥
4.
आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी।
चित्त चढ़ो मेरे माधुरी मूरत उर बिच आन अड़ी।
कब की ठाढ़ी पंथ निहारूँ अपने भवन खड़ी।।
कैसे प्राण पिया बिन राखूँ जीवन मूल जड़ी।
मीरा गिरधर हाथ बिकानी लोग कहै बिगड़ी।।
5.
आली, म्हांने लागे वृन्दावन नीको।
घर घर तुलसी ठाकुर पूजा दरसण गोविन्दजी को॥
निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को।
रतन सिंघासन आप बिराजैं, मुगट धर्यो तुलसी को॥
कुंजन कुंजन फिरति राधिका, सबद सुनन मुरली को।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बजन बिना नर फीको॥
6.
आली , सांवरे की दृष्टि मानो, प्रेम की कटारी है॥
लागत बेहाल भई, तनकी सुध बुध गई ,
तन मन सब व्यापो प्रेम, मानो मतवारी है॥
सखियां मिल दोय चारी, बावरी सी भई न्यारी,
हौं तो वाको नीके जानौं, कुंजको बिहारी॥
चंदको चकोर चाहे, दीपक पतंग दाहै,
जल बिना मीन जैसे, तैसे प्रीत प्यारी है॥
बिनती करूं हे स्याम, लागूं मैं तुम्हारे पांव,
मीरा प्रभु ऐसी जानो, दासी तुम्हारी है॥
7.
कठण थयां रे माधव मथुरां जाई, कागळ न लख्यो कटकोरे॥ध्रु०॥
अहियाथकी हरी हवडां पधार्या। औद्धव साचे अटक्यारे॥१॥
अंगें सोबरणीया बावा पेर्या। शीर पितांबर पटकोरे॥२॥
गोकुळमां एक रास रच्यो छे। कहां न कुबड्या संग अतक्योरे॥३॥
कालीसी कुबजा ने आंगें छे कुबडी। ये शूं करी जाणे लटकोरे॥४॥
ये छे काळी ने ते छे। कुबडी रंगे रंग बाच्यो चटकोरे॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। खोळामां घुंघट खटकोरे॥६॥
8.
करुणा सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी॥
दरसण कारण भई बावरी बिरह-बिथा तन घेरी।
तेरे कारण जोगण हूंगी, दूंगी नग्र बिच फेरी॥
कुंज बन हेरी-हेरी॥
अंग भभूत गले मृगछाला, यो तप भसम करूं री।
अजहुं न मिल्या राम अबिनासी बन-बन बीच फिरूं री॥
रोऊं नित टेरी-टेरी॥
जन मीरा कूं गिरधर मिलिया दुख मेटण सुख भेरी।
रूम रूम साता भइ उर में, मिट गई फेरा-फेरी॥
रहूं चरननि तर चेरी॥
9.
सखी मेरी नींद नसानी हो।
पिवको पंथ निहारत सिगरी, रैण बिहानी हो।
सखियन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो।
बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय, ऐसी ठानी हो।
अंग-अंग ब्याकुल भई मुख, पिय पिय बानी हो।
अंतर बेदन बिरहकी कोई, पीर न जानी हो।
ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो।
मीरा ब्याकुल बिरहणी, सुध बुध बिसरानी हो।
10.
कहां गयोरे पेलो मुरलीवाळो, अमने रास रमाडीरे॥ध्रु०॥
रास रमाडवानें वनमां तेड्या मोहन मुरली सुनावीरे॥१॥
माता जसोदा शाख पुरावे केशव छांट्या धोळीरे॥२॥
हमणां वेण समारी सुती प्रेहरी कसुंबळ चोळीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर चरणकमल चित्त चोरीरे॥४॥
11.
कागळ कोण लेई जायरे मथुरामां वसे रेवासी मेरा प्राण पियाजी॥ध्रु०॥
ए कागळमां झांझु शूं लखिये। थोडे थोडे हेत जणायरे॥१॥
मित्र तमारा मळवाने इच्छे। जशोमती अन्न न खाय रे॥२॥
सेजलडी तो मुने सुनी रे लागे। रडतां तो रजनी न जायरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल तारूं त्यां जायरे॥४॥
12.
काना चालो मारा घेर कामछे। सुंदर तारूं नामछे॥ध्रु०॥
मारा आंगनमों तुलसीनु झाड छे। राधा गौळण मारूं नामछे॥१॥
आगला मंदिरमा ससरा सुवेलाछे। पाछला मंदिर सामसुमछे॥२॥
मोर मुगुट पितांबर सोभे। गला मोतनकी मालछे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल चित जायछे॥४॥
13.
काना तोरी घोंगरीया पहरी होरी खेले किसन गिरधारी॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत खेलत राधा प्यारी॥२॥
आली कोरे जमुना बीचमों राधा प्यारी॥३॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे कुंडलकी छबी न्यारी॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल बलहारी॥५॥
14.
कान्हा कानरीया पेहरीरे॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। खेल खेलकी गत न्यारीरे॥१॥
खेल खेलते अकेले रहता। भक्तनकी भीड भारीरे॥२॥
बीखको प्यालो पीयो हमने। तुह्मारो बीख लहरीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरण कमल बलिहारीरे॥४॥
15.
कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी, तोरि बनसरी लागी मोकों प्यारीं॥ध्रु०॥
दहीं दुध बेचने जाती जमुना। कानानें घागरी फोरी॥ काना०॥१॥
सिरपर घट घटपर झारी। उसकूं उतार मुरारी॥ काना०॥२॥
सास बुरीरे ननंद हटेली। देवर देवे मोको गारी॥ काना०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी॥ काना०॥४॥
16.
कान्हो काहेकूं मारो मोकूं कांकरी, कांकरी कांकरी कांकरीरे॥ध्रु०॥
गायो भेसो तेरे अवि होई है। आगे रही घर बाकरीरे॥ कानो॥१॥
पाट पितांबर काना अबही पेहरत है। आगे न रही कारी घाबरीरे॥ का०॥२॥
मेडी मेहेलात तेरे अबी होई है। आगे न रही वर छापरीरे॥ का०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। शरणे राखो तो करूं चाकरीरे॥ कान०॥४॥
17.
कायकूं देह धरी भजन बिन कोयकु देह गर्भवासकी त्रास देखाई धरी वाकी पीठ बुरी॥ भ०॥१॥
कोल बचन करी बाहेर आयो अब तूम भुल परि॥ भ०॥२॥
नोबत नगारा बाजे। बघत बघाई कुंटूंब सब देख ठरी॥ भ०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जननी भार मरी॥ भ०॥४॥
18.
कारे कारे सबसे बुरे ओधव प्यारे॥ध्रु०॥
कारेको विश्वास न कीजे अतिसे भूल परे॥१॥
काली जात कुजात कहीजे। ताके संग उजरे॥२॥
श्याम रूप कियो भ्रमरो। फुलकी बास भरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। कारे संग बगरे॥४॥