भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पदावली / भाग-3 / मीराबाई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
कालोकी रेन बिहारी। महाराज कोण बिलमायो॥ध्रु०॥
काल गया ज्यां जाहो बिहारी। अही तोही कौन बुलायो॥१॥
कोनकी दासी काजल सार्यो। कोन तने रंग रमायो॥२॥
कंसकी दासी काजल सार्यो। उन मोहि रंग रमायो॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। कपटी कपट चलायो॥४॥

2.
किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर गंवा चरावे। खांदे कंबरिया काला॥१॥
मोर मुकुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत हीरा॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल बलहारा॥३॥

3.
बादल देख डरी हो, स्याम! मैं बादल देख डरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
जित जाऊँ तित पाणी पाणी हुई भोम हरी।।
जाका पिय परदेस बसत है भीजूं बाहर खरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी कीजो प्रीत खरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।

4.
कीत गयो जादु करके नो पीया॥ध्रु०॥
नंदनंदन पीया कपट जो कीनो। नीकल गयो छल करके॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कबु ना मीले आंग भरके॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई। चरणकमल चित्त धरके॥३॥

5.
कीसनजी नहीं कंसन घर जावो। राणाजी मारो नही॥ध्रु०॥
तुम नारी अहल्या तारी। कुंटण कीर उद्धारो॥१॥
कुबेरके द्वार बालद लायो। नरसिंगको काज सुदारो॥२॥
तुम आये पति मारो दहीको। तिनोपार तनमन वारो॥३॥
जब मीरा शरण गिरधरकी। जीवन प्राण हमारो॥४॥

6.
कुंजबनमों गोपाल राधे॥ध्रु०॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। नीरखत शाम तमाल॥१॥
ग्वालबाल रुचित चारु मंडला। वाजत बनसी रसाळ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनपर मन चिरकाल॥३॥

7.
कुण बांचे पाती, बिना प्रभु कुण बांचे पाती।
कागद ले ऊधोजी आयो, कहां रह्या साथी।
आवत जावत पांव घिस्या रे (वाला) अंखिया भई राती॥
कागद ले राधा वांचण बैठी, (वाला) भर आई छाती।
नैण नीरज में अम्ब बहे रे (बाला) गंगा बहि जाती॥
पाना ज्यूं पीली पड़ी रे (वाला) धान नहीं खाती।
हरि बिन जिवणो यूं जलै रे (वाला) ज्यूं दीपक संग बाती॥
मने भरोसो रामको रे (वाला) डूब तिर्‌यो हाथी।
दासि मीरा लाल गिरधर, सांकडारो साथी॥

8.
कुबजानें जादु डारा। मोहे लीयो शाम हमारारे॥ कुबजा०॥ध्रु०॥
दिन नहीं चैन रैन नहीं निद्रा। तलपतरे जीव हमरारे॥ कुब०॥१॥
निरमल नीर जमुनाजीको छांड्यो। जाय पिवे जल खारारे॥ कु०॥२॥
इत गोकुल उत मथुरा नगरी। छोड्यायो पिहु प्यारा॥ कु०॥३॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। जीवन प्रान हमारा॥ कु०॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। बिरह समुदर सारा॥ कुबजानें जादू डारारे कुब०॥५॥

9.
कृष्ण करो जजमान॥ प्रभु तुम॥ध्रु०॥
जाकी किरत बेद बखानत। सांखी देत पुरान॥ प्रभु०२॥
मोर मुकुट पीतांबर सोभत। कुंडल झळकत कान॥ प्रभु०३॥
मीराके प्रभू गिरिधर नागर। दे दरशनको दान॥ प्रभु०४॥

10.
कृष्णमंदिरमों नाचे तो ताल मृदंग रंग चटकी।
पावमों घुंगरू झुमझुम वाजे। तो ताल राखो घुंगटकी॥१॥
नाथ तुम जान है सब घटका मीरा भक्ति करे पर घटकी॥ध्रु०॥
ध्यान धरे मीरा फेर सरनकुं सेवा करे झटपटको।
सालीग्रामकूं तीलक बनायो भाल तिलक बीज टबकी॥२॥
बीख कटोरा राजाजीने भेजो तो संटसंग मीरा हटकी।
ले चरणामृत पी गईं मीरा जैसी शीशी अमृतकी॥३॥
घरमेंसे एक दारा चली शीरपर घागर और मटकी।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जैसी डेरी तटवरकी॥४॥

11.
कैसी जादू डारी। अब तूने कैशी जादु॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडलकी छबि न्यारी॥१॥
वृंदाबन कुंजगलीनमों। लुटी गवालन सारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलहारी॥३॥

12.
कोई कहियौ रे प्रभु आवन की,
आवनकी मनभावन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजै ,
बाण पड़ी ललचावन की।
ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै,
नदियां बहै जैसे सावन की।
कहा करूं कछु नहिं बस मेरो,
पांख नहीं उड़ जावनकी।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे,
चेरी भै हूँ तेरे दांवन की।

13.
कोईकी भोरी वोलो मइंडो मेरो लूंटे॥ध्रु०॥
छोड कनैया ओढणी हमारी। माट महिकी काना मेरी फुटे॥ को०॥१॥
छोड कनैया मैयां हमारी। लड मानूकी काना मेरी तूटे॥ को०॥२॥
छोडदे कनैया चीर हमारो। कोर जरीकी काना मेरी छुटे॥ को०॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। लागी लगन काना मेरी नव छूटे॥ को०॥४॥
 
14.
कोई देखोरे मैया। शामसुंदर मुरलीवाला॥ध्रु०॥
जमुनाके तीर धेनु चरावत। दधी घट चोर चुरैया॥१॥
ब्रिंदाजीबनके कुंजगलीनमों। हमकू देत झुकैया॥२॥
ईत गोकुल उत मथुरा नगरी। पकरत मोरी भय्या॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बजैया॥४॥

16.
कौन भरे जल जमुना। सखीको०॥ध्रु०॥
बन्सी बजावे मोहे लीनी। हरीसंग चली मन मोहना॥१॥
शाम हटेले बडे कवटाले। हर लाई सब ग्वालना॥२॥
कहे मीरा तुम रूप निहारो। तीन लोक प्रतिपालना॥३॥

17.
करूं मैं बनमें गई घर होती। तो शामकू मनाई लेती॥ध्रु०॥
गोरी गोरी बईमया हरी हरी चुडियां। झाला देके बुलालेती॥१॥
अपने शाम संग चौपट रमती। पासा डालके जीता लेती॥२॥
बडी बडी अखिया झीणा झीणा सुरमा। जोतसे जोत मिला लेती॥३॥
कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल लपटा लेती॥४॥

18.
खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥
हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो। एकबार दरसन दे जारे॥१॥
आप बिहारे दरसन तिहारे। कृपादृष्टि करी जारे॥२॥
नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो। एक हाम पैन सहजीरे।
जो दिन ते सखी मधुबन छांडो। ले गयो काळ कलेजारे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सबही बोल सजारे॥४॥

19.
खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥
हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो। एकबार दरसन दे जारे॥१॥
आप बिहारे दरसन तिहारे। कृपादृष्टि करी जारे॥२॥
नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो। एक हाम पैन सहजीरे।
जो दिन ते सखी मधुबन छांडो। ले गयो काळ कलेजारे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सबही बोल सजारे॥४॥

20..
गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय।
ऊंची नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराय।
सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय॥
ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़्‌यो न जाय।
पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय॥
कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़ पैंड़ बटमार।
है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।
जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥

21.
गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे॥ध्रु०॥
स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥

22.
गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे॥ध्रु०॥
स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥

23.
गोपाल राधे कृष्ण गोविंद॥ गोविंद॥ध्रु०॥
बाजत झांजरी और मृंदग। और बाजे करताल॥१॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गलां बैजयंती माल॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपाल॥३॥

24.
गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा॥
चरण कंवल को हंस हंस देखूं, राखूं नैणां नेरा।
निरखणकूं मोहि चाव घणेरो, कब देखूं मुख तेरा॥
व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिल तूं मीत सबेरा।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा॥

25.
घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै॥
दीपक जोय कहा करूं सजनी, पिय परदेस रहावै।
सूनी सेज जहर ज्यूं लागे, सिसक-सिसक जिय जावै॥
नैण निंदरा नहीं आवै॥
कदकी उभी मैं मग जोऊं, निस-दिन बिरह सतावै।
कहा कहूं कछु कहत न आवै, हिवड़ो अति उकलावै॥
हरि कब दरस दिखावै॥
ऐसो है कोई परम सनेही, तुरत सनेसो लावै।
वा बिरियां कद होसी मुझको, हरि हंस कंठ लगावै॥
मीरा मिलि होरी गावै॥

26.
घर आवो जी सजन मिठ बोला।
तेरे खातर सब कुछ छोड्या, काजर, तेल तमोला॥
जो नहिं आवै रैन बिहावै, छिन माशा छिन तोला।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, कर धर रही कपोला॥

27.
चरन रज महिमा मैं जानी। याहि चरनसे गंगा प्रगटी।
भगिरथ कुल तारी॥ चरण०॥१॥
याहि चरनसे बिप्र सुदामा। हरि कंचन धाम दिन्ही॥ च०॥२॥
याहि चरनसे अहिल्या उधारी। गौतम घरकी पट्टरानी॥ च०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल से लटपटानी॥ चरण०॥४॥