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पदावली / भाग 1 / नामदेव

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हरि नांव हीरा हरि नांव हीरा।
हरि नांव लेत मिटै सब पीरा॥टेक॥
हरि नांव जाती हरि नांव पांती।
हरि नांव सकल जीवन मैं क्रांती॥१॥
हरि नांव सकल सुषन की रासी।
हरि नांव काटै जम की पासी॥२॥
हरि नांव सकल भुवन ततसारा।
हरि नांव नामदेव उतरे पारा॥३॥


राम नाम षेती राम नांम बारी।
हमारै धन बाबा बनवारी॥टेक॥
या धन की देषहु अधिकाई।
तसकर हरै न लागै काई॥१॥
दहदिसि राम रह्या भरपूरि।
संतनि नीयरै साकत दूरि॥२॥
नामदेव कहै मेरे क्रिसन सोई।
कूंत मसाहति करै न कोई॥३॥


रामसो धन ताको कहा अब थोरौ।
अठ सिधि नव निधि करत निहोरौ॥टेक॥
हरिन कसिब बधकरि अधपति देई।
इंद्रकौ विभौ प्रहलाद न लेई॥१॥
देव दानवं जाहि संपदा करि मानै।
गोविंद सेवग ताहि आपदा करि जानै॥२॥
अर्थ धरम काम की कहा मोषि मांगै।
दास नामदेव प्रेम भगति अंतरि जो जागै॥३॥



राम रमे रमि राम संभारै।
मैं बलि ताकी छिन न बिचारै॥टेक॥
राम रमे रमि दीजै तारी।
वैकुंठनाथ मिलै बनवारी॥१॥
राम रमे रमि दीजै हेरी।
लाज न कीजै पसुवां केरी॥२॥
सरीर सभागा सो मोहि भावै।
पारब्रह्म का जे गुन गावै॥३॥
सरीर धरे की इहै बडाई।
नामदेव राम न बीसरि जाई॥४॥


राम बोले राम बोले राम बिना को बोले रे भाई॥टेक॥
ऐकल मींटी कुंजर चीटी भाजन रे बहु नाना ।
थावर जंगम कीट पतंगा, सब घटि राम समाना॥१॥
ऐकल चिता राहिले निता छूटे सब आसा ।
प्रणवत नांमा भये निहकामा तुम ठाकुर मैं दासा॥२॥



राम सो नामा नाम सो रामा।
तुम साहिब मैं सेवग स्वामां॥टेक॥
हरि सरवर जन तरंग कहावै।
सेवग हरि तजि कहुं कत जावे॥१॥
हरि तरवर जन पंषी छाया।
सेवग हरिभजि आप गवाया॥२॥
नामा कहै मैं नरहरि पाया।
राम रमे रमि राम समाया॥३॥


जन नामदेव पायो नांव हरी ।
जम आय कहा करिहै बौरै।
अब मोरी छूटि परी॥टेक॥
भाव भगति नाना बिधि कीन्ही।
फल का कौन करी ।
केवल ब्रह्म निकटि ल्यौ लागी।
मुक्ति कहा बपुरी॥१॥
नांव लेत सनकादिक तारे।
पार न पायो तास हरी ।
नामदेव कहै सुनौ रे संतौ।
अब मोहिं समझि परी॥२॥



रामनाम जपिबौ श्रवननि सुनिबौ ।
सलिल मोह मैं बहि नहीं जाईबौ ॥टेक॥
अकथ कथ्यौ न जाइ।
कागद लिख्यौ न माइ ।
सकल भुवनपति मिल्यौ है सहज भाइ॥१॥
राम माता राम पिता राम सबै जीव दाता ।
भणत नामईयौ छीपौ।
कहै रे पुकारि गीता॥२॥



धृग ते बकता धृग ते सुरता।
प्राननाथ कौ नांव न लेता॥टेक॥
नाद वेद सब गालि पुरांनां।
रामनाम को मरम न जाना॥१॥
पंडित होइ सो बेद बषानै।
मूरिष नामदेव राम ही जानै॥२॥